Saturday, 26 September 2015

किस केलिए ये गीत

दिल कबी ये सोचा नहीं करता 
जो सोचकर हो वो प्यार नहीं होता 
फिर मैं इतना क्यों सोचता हुँ 
की अगर तुम्हारा साथ नहीं होता 
तो मेरा क्या होता 
                                 

तुझसे ये दूरिया 
रक नहीं पाते हम 
तेरे करीब आते ही 
रोक अपने को नहीं पाते हम 

कहते है  प्यार में 
हर दर्द है जायज़ 
फिर क्यों इस तड़प 
को छुड़ाने की है  ख्वाइश 
                                  

इस प्यार के सिवा 
कुछ जीने की वजह नहीं 
तड़प के बिना 
प्यार में कुछ मज़ा नहीं 

एसे ही कई गीत 
हम लिकते है नये हर बार 
' किस परी केलिए है ये गीत '
सब पूछते है बार बार 
                                      

सपनो की है वो रानी 
बस चलती है उसकी मनमानी 
चेहरा अब तक दिखा नहीं 
बस रोज़ दिखाती है नयी कहानी 
                                                   

आयेगी सामने कब 
इसका कुछ पता नहीं 
तब तक सोने के सिवा 
और कुछ रास्ता हमें दिखता नहीं

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1 comment:

  1. THIS POEM IS DEDICATED TO THOSE FRIENDS OF MINE WHO ARE ALWAYS CURIOUS ABOUT KNOWING " TO WHOM IS THIS POEM DEDICATED?"

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